02-02-76   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बाप-स्नेही बनने की निशानी- फरिश्ता-स्वरूप बनना

फरिश्तेपन की योग्यतायें भरने वाले, सर्व गुणों के भण्डार शिव बाबा वत्सों से बोले –

सदा अपना फ्युचर सामने रहता है? जितना निमित्त बनी हुई आत्मायें अपने फ्युचर को सदा सामने रखेंगी, उतना अन्य आत्माओं को भी अपना फ्युचर बनाने की प्रेरणा दे सकेंगी। अपना फ्युचर स्पष्ट नहीं तो दूसरों को भी स्पष्ट बनाने का रास्ता नहीं बता सकेंगी। अपना फ्युचर स्पष्ट है? ‘महाराजा या महारानी’ - जो भी बने, लेकिन उससे पहले अपना भविष्य फरिश्तेपन का, कर्मातीत अवस्था का - वह सामने स्पष्ट आता है? ऐसा अनुभव होता है कि मैं हर कल्प में फरिश्ते स्वरूप में ये पार्ट बजा चुकी हूँ और अभी बजाना है? वो झलक सामने आती है। जैसे दर्पण में अपने स्वरूप की झलक देखते हो, ऐसे नॉलेज के दर्पण में अपने पुरूषार्थ से फरिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है? जब तक फरिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई नहीं देगी, तब तक भविष्य भी स्पष्ट नहीं होगा। यह संकल्प आता ही रहेगा कि शायद मैं ये बनूँ या वो बनूँ? लेकिन फरिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देगी तो वह भी स्पष्ट दिखाई देगी। तो वह दिखाई देता है या अभी घूँघट में है? जैसे चित्र का अनावरण कराते; हो तो अपने फरिश्ते स्वरूप का अनावरण कब करेंगे? आपेही करेंगे या चीफ गेस्ट को बुलायेंगे? यह पुरूषार्थ की कमजोरी का पर्दा हटाओ तो स्पष्ट फरिश्ता रूप हो जायेगा। 

अभी तो चलते-फिरते ऐसे अनुभव होना चाहिये जैसे साकार को देखा -- चलते-फिरते या तो फरिश्ते रूप का या भविष्य रूप का अनुभव होता था, तभी तो औरों को भी होता था। मैं टीचर हूँ, मैं सेवाधारी हूँ - यह तो जैसा समय, वैसा स्वरूप हो जाता है। अब स्वयं को फरिश्ते रूप में अनुभव करो तो साक्षात्कार होगा। साक्षात्कार का रूप कौन-सा है? फरिश्ता रूप बनना। चलते फिरते ‘फरिश्ता स्वरूप’। अगर साक्षात् फरिश्ते नहीं बनेंगे तो साक्षात्कार कैसे करा सकेंगे? तो टीचर्स के लिये अब विशेष पुरूषार्थ कौन-सा है? यही कि फरिश्ता इस साकार सृष्टि पर आया हूँ सेवा अर्थ। फरिश्ते प्रकट होते हैं, फिर समा जाते हैं। फरिश्ते सदा इस साकारी सृष्टि पर ठहरते नहीं, कर्म किया और गायब! तो जब ऐसे फरिश्ते होंगे तो इस देह और देह के सम्बन्ध व पुरानी दुनिया में पाँव नहीं टिकेगा। जब कहते हो कि हम बाप के स्नेही हैं; तो बाप सूक्ष्मवतन-वासी और आप सारा दिन स्थूलवतन-वासी, तो स्नेही कैसे? तो सूक्ष्मवतन-वासी फरिश्ते बनो। सर्व आकर्षणों या लगावों के रिश्ते और रास्ते बन्द करो तो कहेंगे कि बाप स्नेही हो। यहाँ होते हुए भी जैसे कि नहीं है - यह है लास्ट स्टेज। विशेष सेवार्थ निमित्त हो, तो पुरूषार्थ में भी विशेष होना चाहिये। जब दूसरों को चलते-फिरते यह अनुभव होगा कि आप लोग फरिश्ते हैं, तो दूसरे भी प्रेरणा ले सकेंगे। अगर साकार सृष्टि की स्मृति से परे हो जाओ तो जो छोटी-छोटी बातों में टाइम वेस्ट करते हो, वह नहीं होगा। तो अब हाई जम्प लगाओ - साकार सृष्टि से एकदम फरिश्तों की दुनिया में व फरिश्ता स्वरूप इसको कहते हैं हाई जम्प। तो छोटी-छोटी बातें शोभेंगी नहीं। तो यह बाप की विशेष सौगात है। सौगात लेना अर्थात् फरिश्ता स्वरूप बनना। तो बाप भी यह फरिश्ता स्वरूप का चित्र सौगात में देते हैं। इस सौगात से पुरानी बातें सब समाप्त हो जायेंगी। ‘क्या’ और ‘क्यों’ की रट नहीं लगानी है। निर्णय-शक्ति, परखने की शक्ति, परिवर्तन-शक्ति - जब ये तीनों शक्तियाँ होंगी तो ही एकदूसरे को खुशखबरी सुनायेंगे। अगर खुद में परिवर्तन नहीं तो दूसरों में भी परिवर्तन नहीं ला सकेंगे। अच्छा! 

परिवर्तन-शक्ति वाला ही सफल 

प्रश्न:- किसी भी प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने के लिये विशेष कौन-सी शक्ति की आवश्यकता है? 

उत्तर:- परिवर्तन करने की शक्ति। जब तक परिवर्तन करने की शक्ति नहीं होगी, तब तक निर्णय को भी प्रैक्टिकल में नहीं ला सकते हैं। क्योंकि हर स्थान पर, हर स्थिति में, चाहे स्वयं के प्रति व सेवा के प्रति हो, परिवर्तन ज़रूर करना पड़ता है। जैसे सफलतामूर्त्त बनने के लिए संस्कार व स्वभाव परिवर्तन करना पड़ता है, वैसे ही सेवा में अपने विचारों को कहीं-न-कहीं परिवर्तन करना पड़ता है। परिवर्तन-शक्ति वाला कैसी भी परिस्थिति में सफल हो जाता है क्योंकि वह बहुरूपी होता है। प्लैन को सेवा में लायेंगे और प्वाइन्ट्स को प्रैक्टिकल जीवन में लायेंगे - तो दोनों के लिये परिवर्तन करने की शक्ति चाहिये। नॉलेजफुल होने के नाते यह तो निर्णय कर लेते हैं कि ‘ये होना चाहिये’ लेकिन परिवर्तन नहीं होता है। इसका कारण है परिवर्तन-शक्ति की कमी। जिसमें परिवर्तन-शक्ति है, वे सर्व के स्नेही होंगे और सदा सफल भी होंगे। संकल्प में दृढ़ता लाने से प्रत्यक्ष फल निकल आता है। परिवर्तन करके सफल बनना ही है - यह है दृढ़ संकल्प। सफलता सफलता-मूर्तों का आह्वान कर रही है कि सफलता-मूर्त्त आवें तो मैं उनके गले की माला बनूँ। अच्छा!